महाभारत युद्ध के बाद श्री कृष्ण और भीष्म पितामह के बीच अंतिम संवाद

महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था। युद्ध ख़त्म होने के बाद कुरुक्षेत्र के मैदान में चारो तरफ खून से लथपथ सैनिको की लाशे, टूटे हुए रथ, भाले, तलवार आदि सब पड़े थे और जमीन पर सैकड़ो गिद्ध, सियार और कुत्ते भोजन की तलाश में घूम रहे थे।

और उन्ही के बीच बाणों की शैया पर भीष्म पितामह लेते हुए थे। भीष्म पितामह को ये बाण युद्ध करते समय अर्जुन ने मारे थे। भीष्म पितामह अर्जुन से महान योद्धा थे लेकिन फिर भी अर्जुन ने उनके शरीर को अनगिनत बाणों से भेद दिया था। अर्जुन ने भीष्म पितामह को अनगिनत बाण कैसे मारे इसके पीछे भी एक कहानी है।

अर्जुन ने भीष्म पितामह को इतने बाण मारे की जब वे जमीन पर गिरे तो शरीर से आर-पार बाणों की एक शैया बन गयी।

भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। अनगिनत बाण लगने के बाद भी उन्होंने अपने प्राण नही त्यागे क्योंकि उन्होंने शपथ ली थी कि जब तक वे हस्तिनापुर को सुरक्षित नही देख लेते वे अपने प्राण नही त्यागेगे।

महाभारत के युद्ध में पांड्वो की विजय हुई और युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया। तब भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने का निर्णय किया।

युद्ध ख़त्म होने के बाद सूर्य पश्चिम की और ढ़लने ही वाला था, उसी समय सभी पांडव और श्री कृष्ण भीष्म पितामह ने आखिरी बार मिलने के लिए आते है। उस समय कृष्ण और भीष्म पितामह के बीच जो संवाद हुआ वह इस प्रकार है –

श्री कृष्ण – प्रणाम पितामह!

पितामह – आओ देवकीनंदन, आपका स्वागत है। मैं आपके बारे में ही सोच रहा था।

श्री कृष्ण – पितामह! अब तो मैं आपसे यह भी नही पूछ सकता कि आप कैसे है?

पितामह – थोड़ी देर चुप रहने के बाद, पुत्र युधिष्ठिर का राज्यभिषेक करा दिया केशव(श्री कृष्ण)? अब उसके परिवार में कोई बड़ा बुजुर्ग नही बचा है इसलिए आपको ही उसका ध्यान रखना होगा।   

श्री कृष्ण – भगवान कृष्ण चुप रहे।

पितामह – क्या आपसे कुछ प्रश्न पूछ सकता हूँ केशव? बड़े सही समय पर आये हो, यह शरीर छोड़ने से पहले मेरे कुछ भ्रम दूर कर दो।

श्री कृष्ण – कहिये ना पितामह!

पितामह – एक बार बताओ कृष्ण, आप तो ईश्वर हो ना?

श्री कृष्ण – श्री कृष्ण ने बीच में ही टोकते हुए कहा, नही पितामह! मैं तो आपका पौत्र हूँ।

पितामह – पितामह हंसने लगे और बोले अब तो ठगना छोड़ दो कन्हैया! जाने से पहले मैं यह जानना चाहता हूँ कि इस युद्ध में जो हुआ क्या वह ठीक था?

श्री कृष्ण – किसकी और से पितामह? कौरवो की तरफ से या पांडवो की तरफ से?

पितामह – कौरवो की तरफ से चर्चा करने का अब कोई मतलब भी रहा केशव लेकिन जो पांड्वो की तरफ से हुआ क्या वह सही था? जैसे आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुस्सासन का छाती चीर देना, निहत्थे कर्ण का वध करना आदि।

श्री कृष्ण – इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह। इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया है मतलब पांडवो को इसका उत्तर देना चाहिए। मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नही।

पितामह – विश्व भले ही यह समझता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है लेकिन मैं जानता हूँ कि यह आपकी जीत है। मैं तो उत्तर आपसे ही पुछूगा।  

श्री कृष्ण – अगर आप मुझसे ही जानना चाहते है तो सुनिए पितामह! कुछ बुरा नही हुआ वही हुआ जो होना चाहिए।

पितामह – यह आप क्या कह रहे हो कृष्ण? मर्यादा पुरुषोतम राम का अवतार कृष्ण ऐसा कह रहा है। युद्ध में छल करना तो हमारे संस्कारो में कभी नही था फिर यह उचित कैसे हो गया।

श्री कृष्ण – शिक्षा इतिहास से ली जाती है लकिन निर्णय वर्तमान के आधार पर लिया जाता है। राम त्रेता युग के नायक थे उस समय रावण जैसा खलनायक भी शिव भक्त था और धर्म का महाज्ञानी था इसलिए श्री राम ने उनके साथ कहीं छल नही किया।

लेकिन मुझे द्वापर युग मिला है और इस युग में कंस, दुरासंध, सकुनी, दुर्योधन, दुस्सासन जैसे कपटी लोग आये इसलिए उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है। पाप का अंत आवश्यक है जाहे वह जिस विधि से हो।

पितामह – तो क्या आगे चलकर आपके इन निर्णयों से गलत परम्पराए नही प्रारंभ होगी केशव? क्या भविष्य आपके इन छलो का अनुसरण नही करेगा और करेगा तो क्या यह उचित होगा?  

श्री कृष्ण – भविष्य तो इससे भी नकारामक आ रहा है पितामह। कलयुग में तो इतने से भी कम नही चलेगा वहां मनुष्य को कृष्ण से भी कठोर होना होगा वरना धर्म समाप्त हो जायेगा।

जब क्रूर शक्तियाँ धर्म का विनाश करने के लिए आतुर हो तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है। तब केवल विजय महत्वपूर्ण होती है। भविष्य को यह सीखना ही होगा।

पितामह – तो क्या धर्म का भी विनाश हो सकता है कृष्ण? और अगर धर्म का विनाश होना ही है तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है?

श्री कृष्ण – सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़कर बैठना भी मुर्खता है। ईश्वर स्वयं कुछ नही करता, सबकुछ मनुष्य को ही करना होता है। आप मुझे ईश्वर कहते है ना पितामह! तो बताइए मैंने इस युद्ध में कुछ किया क्या? सब पांडवो को ही करना पड़ा, यही प्रकृति का नियम है।

श्री कृष्ण के जवाबो से भीष्म पितामह अब संतुष्ट दिखाई दे रहे थे और उनकी आखे धीरे-धीरे बंद हो रही थी। सूरज अब ढ़ल गया था।

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