मनुष्य जीवन का उद्देश्य | भगवान कृष्ण के अनुसार
मानव जीवन का परम उद्देश्य “ज्ञान प्राप्त करके उसे अपने जीवन में अप्लाई करना होना चाहिए”।
जब व्यक्ति को उसके जीवन का लक्ष्य पता होता है तो वह अपने लक्ष्य से भटके बिना जीवन में उमंग के साथ निरंतर आगे बढ़ता रहता है इसलिए जीवन लक्ष्य ऐसा होना चाहिए जो आपको इस जीवन की समाप्ति के बाद भी लाभ पहुंचाए।
हर व्यक्ति के दिमाग में भी यह सवाल कभी ना कभी जरुर उठता है कि हमारी लाइफ का पर्पस क्या है? (What is the purpose of life in hindi) फिर वह अपने आस-पास के लोगो को देखकर अपने जीवन का कोई ना कोई पर्पस बना लेता है जैसे नौकरी, बड़ा घर, जमीन-जायदाद, घर-परिवार, मान-सम्मान, इज्जत आदि को अपने जीवन का लक्ष्य बना लेता है।
लेकिन हिन्दू धर्म के प्रवित्र ग्रन्थ “गीता” में भगवान कृष्ण ने इन सभी बातो को अपने जीवन का लक्ष्य बनाने से मना किया है। हालांकि इन सभी चीजो को भी अपने जीवन में हासिल करना चाहिए लेकिन इन्हें कभी भी अपने जीवन का लक्ष्य नही बनाना चाहिए। क्योंकि जीवन के अंत में व्यक्ति को उसके कर्मो का ही फल मिलता है संसारिक वस्तुए आप कितनी भी इक्कठा कर ले इनका कोई मोल नही है।
महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले जब भगवान कृष्ण, अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे होते है तब अर्जुन, भगवान कृष्ण से पूछते है – प्रभु, मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है? तब भगवान कृष्ण कहते है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य अच्छे कर्म करते हुए मोक्ष प्राप्ति होना चाहिए। बिना अच्छे कर्म किए मोक्ष की प्राप्ति संभव नही है।
जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा अच्छा होगा, स्वयं को मुझ पर छोड़ दो अपने कर्म पर ध्यान दो, कर्म ऐसा जो स्वार्थ रहित और पाप रहित हो
भगवान कृष्ण
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मोक्ष का अर्थ
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि पृथ्वी पर लगभग 84 लाख प्रकार के जीव जंतु विद्यमान है और व्यक्ति का उसके कर्मो के आधार पर निर्णय होता है कि वह किस जीव जंतु के रूप में जन्म लेगा इन 84 लाख जन्मो में मानव जीवन को सबसे अच्छा माना गया है।
मोक्ष का अर्थ होता है जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मोक्ष की प्राप्ति के लिए 2 बातों का होना बहुत जरुरी है।
- व्यक्ति के अपने जीवन के अच्छे कर्म तथा
- उसके मन में सभी प्रकार की इच्छाए खत्म हो जानी चाहिए। मतलब उसके मन में किसी भी प्रकार का द्वेष, क्रोद्ध, लालच, घृणा नही होनी चाहिए।
भगवान कृष्ण कहते है कि व्यक्ति को कभी भी सांसारिक जीवन से मूहं नही मोड़ना चाहिए। उसे अच्छे कर्म करते हुए जीवन में अधिक से अधिक धन कमाना चाहिए। अपने और अपने परिवार की सभी प्रकार की इच्छाओ को पूरा करके आत्म संतुष्टि प्राप्त करनी चाहिए
तथा साथ-साथ उसे मोक्ष प्राप्ति से रास्ते पर भी चलना चाहिए।
मनुष्य जीवन के चार प्रमुख उद्देश्य
भगवान कृष्ण ने मनुष्य जीवन को इन चार उद्देश्यों में समेटा है। ये चार उद्देश्य निम्न है
- अर्थ
- काम
- धर्म
- मोक्ष
प्रत्येक मनुष्य को इन चार लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिये चलिए अब इन सभी को विस्तार से समझते है।
1. अर्थ (धन दौलत)
अर्थ से तात्पर्य है जीवन में अपने और अपने परिवार के लिए भौतिक सुख सुविधाये अर्जित करना। प्रत्येक मनुष्य को ना केवल अपने सुखो के लिए धन अर्जित करना चाहिए अपितु अपनी संतान, माता-पिता, रिश्तेदार, जीव जंतु तथा पर्यावरण के प्रति भी अपने कर्तव्यो का निर्वाह करना चाहिए।
धन-संपदा अर्जित करना और अपने कर्तव्यो का निर्वाह करना धर्म है लेकिन धन-संपदा अर्जित करके उसका संचय कर लेना अधर्म है। प्रत्येक धर्म यही कहता है कि आप जितना कमाते है उसका कुछ हिस्सा दान जरुर करना चाहिए।
अर्थ (धन दौलत) कमाने के लिए आपको परिश्रम करना पड़ेगा। लेकिन धन कमाने के लिए कभी भी अधर्म का सहारा नही लेना चाहिए अधर्म के साथ धन कमाना पाप है।
अधर्म का मतलब है ऐसे कार्य जो कानून और धर्म की नजर में गलत है जैसे किसी को मारना, चोरी करना, किसी दूसरे का हक़ छिनना, अपने फायदे के लिए किसी दूसरे व्यक्ति का नुकसान करना आदि।
अगर आप पैसा कमाने में सक्षम है लेकिन आप परिश्रम नही करना चाहते और पैसे के लिए किसी और पर आश्रित है चाहे वे आपके माता-पिता ही क्यों ना हो भगवान कृष्ण ने कहा है कि ऐसा करना भी पाप है।
इसलिए मानव जीवन का पहला लक्ष्य है धर्म का पालन करते हुए अधिक से अधिक पैसा (अर्थ) कमाना और संसार के प्रति अपने कर्तव्यो का पालन करना।
2. काम (मौज मस्ती)
काम से तात्पर्य है सभी ज्ञानेन्द्रियो और कर्मेन्द्रियो के सुखों को भोगना। काम के अंतर्गत आता है संगीत सुनना, स्वादिष्ट खाना-पीना, नाटक, अच्छे वस्त्र पहनना, आभूषण पहनना, रहन-सहन के साधन, शादी करना, संतानोत्पति, खेल-कूद, तथा मनोरंजन के सभी साधन आदि आते है।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी कामवासना की पूर्ति करने का अधिकार है। इन साधनों के अभाव से व्यक्ति का जीवन नीरस हो जाता है।
कुछ व्यक्ति अपनी काम इच्छाओ का दमन करके मोक्ष प्राप्ति के लिए सन्यास ग्रहण कर लेते है और जीवन भर अतृप्त इच्छाओ के लिए लालायियत रहते है।
मोक्ष की प्राप्ति केवल तभी संभव है जब व्यक्ति अपनी समस्त इच्छाओ की पूर्ति कर लेता है और अंत में उसके मन में किसी भी प्रकार की इच्छा बाकि नही रह जाती।
इसलिए “गीता” में भगवान ने कहा है कि अपने काम की पूर्ति करना गलत नही है लेकिन काम की पूर्ति करते समय धर्म और अर्थ का भी ध्यान रखना चाहिए।
जो मन को नियंत्रित नही करते उनके लिए यह शत्रु के समान कार्य करता है।
भगवान कृष्ण
3. धर्म
दुनिया के सभी धर्मो का एक ही सार है “जियो और जीने दो”। दुनिया के सभी प्राणियों का यह निजी कर्तव्य है कि वे स्वयं के जीवन की रक्षा करें लेकिन साथ ही साथ यह भी ध्यान रखे कि अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरो के जीवन को कष्ट में नही डाले।
धर्म ऐसे कुछ ऐसे नियमो का संग्रह होता है। जिनका पालन करने से प्रत्येक प्राणी के मन में दूसरे सभी जीवो के प्रति आदर-सम्मान का भाव पैदा होता है। धर्म का मूल उद्देश्य होता है मानवता की भलाई करना। दुनिया में बहुत सारे धर्म है जैसे हिन्दू धर्म, ईसाई धर्म, बौध धर्म, मुस्लिम धर्म आदि। लेकिन सबका उद्देश्य एक ही है।
कोई भी व्यक्ति धर्म का पालन तभी कर सकता है जब वह अपने कर्तव्यो का सभी तरीके से निर्वाह करे। “दूसरो को जीने दो” का मार्ग कर्तव्यो से भरा मार्ग है। अगर आप अपने कर्तव्यो को निभाना नही जानते तो आप धर्म का सही तरीके से पालन नही कर पाएंगे।
व्यक्ति के जीवन के चार उद्देश्यों (कर्म, काम, धर्म और मोक्ष) में धर्म सबसे बड़ा है। कर्म, धर्म और काम का सही तरीके से पालन करने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष आखिरी अवस्था है।
गीता में भगवान कृष्ण ने बताया है कि अगर आपको कर्म, धर्म और काम में से किसी को त्यागना पड़े तो सबसे पहले काम को त्यागो, उसके बाद कर्म को त्यागो लेकिन धर्म को कभी नही त्यागना चाहिए।
तुम अनावश्यक रूप से चिंता क्यों करते हो? तुम किससे डरते हो? तुम्हे कौन मर सकता है? आत्मा ना पैदा होती है और ना ही मरती है?
भगवान कृष्ण
4. मोक्ष
मोक्ष का मतलब होता है व्यक्ति का जन्म मरण के चक्र से छुटकारा मोक्ष मिलने पर व्यक्ति को दोबारा जन्म नही लेना पड़ता। लेकिन मोक्ष तभी प्राप्त होता है जब व्यक्ति अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट होता है, यह सुख और शांति की परम सीमा है जो कि मन की सभी इच्छाए खत्म होने के बाद मिलती है।
कोई भी व्यक्ति अपने जीवन से पूरी तरह तभी संतुष्ट हो सकता है। जब वह अपने तीनो कर्तव्यो (कर्म, धर्म और काम) का पूरी ईमानदारी के साथ पालन करता है।
मोक्ष प्राप्ति मानव जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। ज्यादातर लोग प्रथम तीन लक्ष्यों के पीछे भागते हुए ही असंतुष्ट जीवन बिता देते है।
अज्ञानी, अधर्मी, निष्क्रिय, असंतुष्ट, ईर्शालू, क्रूर, रोगी, भोगी व्यक्ति को कभी भी मोक्ष की प्राप्ति नही होती।
जीवन लक्ष्यों कर्म, धर्म और काम के साथ-साथ चार बातें और है जो व्यक्ति को व्यक्ति मोक्ष प्राप्ति में मदद करती है।
अगर आप दूसरो के लिए दिया जलाते है, तो यह आपके रास्ते को भी रोशन कर देता है।
महात्मा बुद्ध
मोक्ष की प्राप्ति चार तरीको से हो सकती है।
- ज्ञान के द्वारा
- ध्यान के द्वारा
- भक्ति के द्वारा
- कर्म के द्वारा
1. ज्ञान के द्वारा
प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्ति के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए ताकि वह जीवन में कोई अधर्म का काम ना करे।
ज्ञान के द्वारा ही व्यक्ति स्वयं का और दूसरो का भला कर सकता है अज्ञानी व्यक्ति को कभी भी मोक्ष की प्राप्ति नही हो सकती।
2. ध्यान के द्वारा
व्यक्ति को प्रत्येक क्षण अपने ईष्ट देव का स्मरण करते रहना चाहिए। रोजाना सुबह शाम अपने गुरु का ध्यान करना चाहिए मतलब मैडिटेशन करना चाहिए।
पढ़े : मैडिटेशन क्या है मैडिटेशन के 4 प्रकार
3. भक्ति के द्वारा
प्रत्येक व्यक्ति को अपने ईष्ट देव या गुरु की भक्ति के गीत गाने चाहिए ताकि व्यक्ति का मन पवित्र रहे और उसमे बुरे विचार ना आये।
भगवान के भजन करने से व्यक्ति के विचार शुद्ध होते है उसे अदृश्य शक्ति का अहसास होता है।
4. कर्म के द्वारा
कर्म के बारे में मैं विस्तार से पहले ही बता चुका हूँ। बस एक बात याद रखे कि व्यक्ति को उसके कर्म (कार्य) ही मोक्ष दिलाते है।
निष्कर्ष
मोक्ष प्राप्ति ही व्यक्ति के जीवन का आखिरी लक्ष्य होना चाहिए।
बहुत सारे लोग है जो यह समझते है कि सन्यास लेने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है लेकिन गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि अगर व्यक्ति अपने संसारिक जीवन में रहते हुए अपने कर्तव्यो का सही तरह से निर्वाह करता है तो उसे भी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
इसलिए मोक्ष के पीछे ना भागे बल्कि अपने जीवन के तीन लक्ष्यों धर्म, कर्म और काम का पालन करें उसके परिणाम स्वरूप आपको मोक्ष मिल जायेगा।
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