महाभारत के वो 5 श्राप जिनका असर आज भी है

महाभारत के जितने भी किरदार है वो कोई आज के समय के जैसे कोई साधारण व्यक्ति नही थे बल्कि वे भगवानो के अवतार थे तथा शस्त्र और शास्त्र ज्ञान में निपूर्ण थे। इसीलिए उनके मुख से निकली हुई वाणी को सत्य होने से कोई नही रोक सकता था।

त्रेता और द्वापर युग में अगर कोई दिव्य पुरुष किसी दुसरे व्यक्ति से क्रोधित हो जाता था तो वह उसे श्राप दे देता था। महाभारत में भी ऐसी कुछ घटनाये हुई थी जिनमे से आज मैं आपको 5 घटनाओं के बारे में बताऊंगा जिनका असर आज भी है।

1. युधिष्ठिर द्वारा स्त्री जाति को दिया गया श्राप

सभी लोग जानते है कि पांडवो की माता का नाम कुंती था लेकिन बहुत ही कम लोग जानते है कि कर्ण की माता भी कुंती ही थी। महाभारत के युद्ध में कर्ण कौरवो की तरफ था क्योंकि दुर्योधन उसका मित्र था।

महाभारत के युद्ध के शुरू होने से पहले कर्ण को यह पता चल गया था कि सभी पांडव उसके छोटे भाई है लेकिन दुर्योधन ने कर्ण से जिन्दगी भर दोस्ती निभाई थी इस कारण वह उसका साथ नही छोड़ सकता था।  

युद्ध में जब अर्जुन ने कर्ण को मार दिया तब कुंती उसकी की लाश के पास जाकर रोने लगती है। यह देखकर सभी पांडव चकित रह जाते है और अपनी माता से कहते है कि आप इस दुश्मन के लिए अपने आंसू क्यों बहा रही है।

तब कुंती उन्हें बताती है कि कर्ण तुम सब का बड़ा भाई था। यह बात सुनकर युधिष्ठिर को गुस्सा आ जाता है और वह अपनी माता से कहता है कि आपने हमसे यह सच क्यों छुपाये रखा, आपकी वजह से आज हम अपने ही बड़े भाई के हत्यारे बन गये। तब युधिष्ठिर स्त्री जाति को यह श्राप देते है कि – “आज के बाद स्त्री जाति कोई भी बात अपने दिल में छुपाकर नही रख सकेगी”  

इसका परिणाम हम आज भी देखते है कि कोई भी स्त्री किसी भी बात को ज्यादा समय तक छुपाकर नही रख सकती।

2. श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप

महाभारत युद्ध के पश्चात हस्तिनापुर पर 36 वर्ष राज करने के बाद पांचो पांडव, द्रोपदी के साथ स्वर्ग की यात्रा पर निकलते है और अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर को राजा बना देते है।

एक दिन परीक्षित जंगल में शिकार कर रहे थे तभी उन्हें शमिक नाम के एक ऋषि तपस्या करते हुए दिखाई देते है। ऋषि ने मौन व्रत धारण कर रखा था लेकिन यह बात राजा को नही पता थी।

राजा ने बहुत देर तक ऋषि को आवाज लगायी लेकिन ऋषि ने कोई जवाब नही दिया। तब राजा ने गुस्सा होकर एक मरा हुआ सांप तपस्या में लीन ऋषि के गले ने डाल दिया। जब यह बात ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने परीक्षित को श्राप दिया कि – “आज से 7 दिन बाद राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सांप के काटने के कारण हो जाएगी” और वही होता है।

कहते है कि राजा परीक्षित की मृत्यु के पश्चात ही कलयुग की शुरूआत हुई थी।

3. श्री कृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप

अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य महाभारत के युद्ध में मारे जाते है। युद्ध के आखिरी दिन अश्वत्थामा पांडव पुत्रो का वध कर देता है। जब पांडवो को इस बात का पता चलता है तो अश्वत्थामा को ढूढते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम पहुंचते है।  

वहां पर अश्वत्थामा पांडवो के उपर ब्रम्हास्त्र चला देता है और दूसरी और से अर्जुन भी ब्रम्हास्त्र चला देता है। महर्षि वेदव्यास दोनों को समझाते है कि तुम दोनों ब्रम्हास्त्र की शक्ति को शायद भूल गये हो। तुम दोनों अभी के अभी ये ब्रम्हास्त्र वापस ले लो वरना ये पृथ्वी नष्ट हो जाएगी।

अर्जुन अपना ब्रम्हास्त्र वापस ले लेता है लेकिन अश्वत्थामा कहता है कि उसे ब्रम्हास्त्र वापस लेने कि विद्या नही आती। इसलिए उसने ब्रम्हास्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की तरफ कर दी और ब्रम्हास्त्र लगने की वजह से बच्चा उसी वक्त मर जाता है।

अश्वत्थामा की इस गलती के कारण श्री कृष्ण अश्वत्थामा के माथे में लगी मणि ले लेते है और उसे श्राप देते है कि – “जब तक ये पृथ्वी रहेगी तब तक तुम अकेले ही जंगलो में भटकते रहोगे और तुम्हारे माथे से जीवन भर खून निकलता रहेगा”

भारत के बहुत सारे गाँवो के लोग आज भी यह दावा करते है कि उन्होंने अश्वत्थामा को देखा है।

4. मांडव्य ऋषि का यमराज को श्राप

महाभारत में मांडव्य ऋषि का भी वर्णन आता है। एक बार राजा ने न्याय में गलती से मांडव्य ऋषि को फांसी की सजा दे दी। मांडव्य ऋषि को फांसी पर बहुत देर लटकाया गया लेकिन मांडव्य ऋषि मरे नही। तब राजा ने अपनी गलती मानकर उनसे क्षमा मांगी।

उसके बाद मांडव्य ऋषि यमराज के पास गये और उनसे पूछा कि मैंने ऐसा कौन सा पाप किया था जिसकी मुझे यह सजा मिली। तब यमराज ने उन्हें बताया कि 12 वर्ष कि आयु में आपने एक तितली को कांटा चुभोया था।

मांडव्य ऋषि गुस्सा हो गये और बोले 12 साल के बच्चे को अच्छे और बुरे का कोई ज्ञान नही होता और आपने इसके लिए मुझे यह सजा दी। मांडव्य ऋषि ने यमराज को श्राप दिया कि – “तुम शुद्र परिवार में दासी की कोख से जन्म लोगे”

मांडव्य ऋषि के इस श्राप के कारण यमराज को विदुर के रूप में जन्म लेना पड़ा। विदुर, पांडू और धृतराष्ट्र के छोटे भाई थे।

5. अप्सरा उर्वशी का अर्जुन को श्राप

जब पांडवो को 13 वर्ष का वनवास मिला था। तब एक बार अर्जुन दिव्यास्त्र की खोज में स्वर्ग लोक गये थे। वहां उर्वशी नाम की एक अप्सरा अर्जुन के रूप को देखकर उन पर मोहित हो जाती है।

उर्वशी ने अर्जुन से विवाह करने का प्रस्ताव रखा। तब अर्जुन ने कहा कि देवराज इन्द्र मेरे पिता है और मैं आपको अपनी माता के समान मानता हूँ। इस बात से उर्वशी ने गुस्सा होकर अर्जुन को श्राप दिया कि – “तुम एक नपुंसक की तरह बात कर रही हो इसलिए तुम्हें आजीवन स्त्रियों के बीच तुम्हे नपुंसक बनकर रहना पड़ेगा”

तब अर्जुन भगवान इन्द्र के पास जाकर उन्हें सारी बात बताते है। इंद्र के कहने पर उर्वशी अपने श्राप की अवधि एक वर्ष कर देती है। तब इंद्र अर्जुन को बताते है कि यह श्राप तुम्हारे अज्ञातवास के समय एक वरदान की तरह कम करेगा और अज्ञातवास के समय अर्जुन नपुंसक बनकर नृत्य सिखाते है और कारवो की पकड़ में नही आते।

तो ये थे महाभारत से जुड़े 5 सबसे बड़े श्राप। उमीद है आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।  

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