कैसे हुई पांडवो के पिता पांडू की मृत्यु
एक बार राजा पांडू जंगल में शिकार कर रहे थे। तब उन्होंने एक हिरन का शिकार करने के लिए तीर चला दिया लेकिन हिरन के वेश में वे एक ऋषि थे। जो अपनी पत्नी के साथ हिरन बनाकर जंगल में टहल रहे थे। मृत्यु से पहले ऋषि ने राजा पांडू को श्राप दिया कि जब भी तुम वैवाहिक जीवन का सुख वहन करोगे उसी वक्त तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
तब राजा पांडू का जीवन से मोह भंग हो जाता है और वो अपने बड़े भाई धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर का राजा बनाकर सन्यास ले लेते है। जब वे साधु बनकर अपना बाकि का जीवन व्यतीत करने जंगल जा रहे होते है तब उनकी दोनों पत्नियाँ कुंती और माद्री भी उनके साथ चलने की जिद्द करने लगती है और आखिर में राजा पांडू उनको भी साथ लेकर हमेशा के लिए जंगल में रहने के लिए चले जाते है।
जंगल में ही पांचो पांडवो का जन्म होता है लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि जब पांडू अपनी पत्नियों के साथ वैवाहिक जीवन का सुख नही भोग सकते तब पांडवो का जन्म कैसे होता है। इसके लिए आपको पांडवो की जन्म कथा पढनी होगी।
एक दिन राजा पांडू अपनी पत्नी माद्री के साथ जंगल में कही जा रहे थे। रास्ते में दोनों नदी के किनारे नहाने के लिए रुक जाते है। तभी पांडू को वैवाहिक जीवन का सुख भोगने की तीव्र इच्छा होती है जैसे ही वो माद्री के करीब जाते है ऋषि के श्राप के कारण उनकी वहीँ पर मृत्यु हो जाती है।
पांडवो के पिता पांडू की मृत्यु के बाद कुंती बड़ी पत्नी होने के कारण उनके साथ सती होना चाहती है लेकिन माद्री अपने आप को पांडू की मृत्यु का कारण बताती है और उनके साथ सती हो जाती है।
इस प्रकार माता कुंती के ऊपर पांचो बेटो के लालन-पालन का भार आ जाता है और माता कुंती पांचो पांड्वो को लेकर वापस हस्तिनापुर लौट जाती है।
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