भीष्म पितामह की जन्म कथा

भीष्म पितामह के बचपन का नाम देवव्रत था। देवव्रत के पिता का नाम महाराज शांतनु और माता का नाम देवी गंगा था महाराज शांतनु पांडवो और कौरवों के परदादा थे।

एक दिन राजा शांतनु जंगल में शिकार खेल रहे थे तभी गंगा नदी के किनारे उन्हें एक सुंदर कन्या (ब्रह्म पुत्री देवी गंगा) मिली और राजा उसे देखते ही उस पर मोहित हो गये। राजा ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन गंगा ने विवाह के लिए एक शर्त रखी कि – “आप मुझसे जीवन भर कोई भी सवाल नही पूछेंगे अगर आपने कोई सवाल पूछा तो उसका जवाब देकर मैं उसी वक्त आपको हमेशा-हमेशा छोड़कर के लिए चली जाउंगी” राजा शांतनु ने उसकी यह शर्त स्वीकार कर ली और उन दोनों ने विवाह कर लिया।

दोनों एक दुसरे से विवाह करके बहुत खुश थे। विवाह के एक वर्ष बाद उन दोनों के एक पुत्र का जन्म हुआ लेकिन गंगा (जिसे वर्तमान में हम गंगा नदी कहते है) उसे ले जाकर गंगा नदी में बहा देती है। यह देखकर राजा शांतनु को बहुत दुःख हुआ लेकिन वे गंगा से ऐसा करने का कारण भी नही पूछ सकते थे क्योंकि उन्होंने गंगा से कोई भी सवाल ना पूछने का वचन दिया था।

दुसरे वर्ष फिर से एक बार उन दोनों के एक पुत्र का जन्म हुआ और गंगा उसे भी गंगा नदी में बहा कर आ गई। राजा चाहते हुए भी कुछ ना कर सके। जो राजा विवाह करके इतना खुश था आज उसके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट रहा था एक के बाद एक करके राजा की पत्नी गंगा ने सात पुत्रों को गंगा नदी में बहाकर मार डाला।

जब राजा के आठवां पुत्र हुआ तो गंगा उसे भी नदी में बहाने के लिए जा रही थी लेकिन इस बार शांतनु से यह देखा नही गया और उन्होंने गंगा से ऐसा करने का कारण पूछ लिया। तब गंगा ने कहा कि आपने अपना वादा तोड़ा है इसलिए इस सवाल का जवाब देकर में यहाँ से हमेशा-हमेशा के लिए चली जाउंगी।

गंगा ने राजा को बताया कि पिछले जन्म में मुझे और आपको मृत्यु लोक में जन्म लेने का श्राप मिला था और आज हम दोनों उस श्राप से मुक्त हो गये है। राजा ने पूछा कैसा श्राप?, कौनसा श्राप? तब गंगा ने बताया कि मैं ब्रह्मा कि बेटी गंगा हूँ और आप पिछले जन्म में आप राजा इंद्र के मित्र थे और इंद्र के दरबार में नृत्य देखें के लिए आया करते थे एक दिन आप वहा बैठे थे और मैं भी वहां आ गयी और पहली ही नजर में हम दोनों एक दुसरे को निहारने लगे। यह बार मेरे पिता ब्रह्मा जी को पसंद नही आई और उन्होंने हम दोनों को मृत्यु लोक में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

तब राजा शांतनु ने पूछा कि ये सात बालक जिनकी तुमने हत्या कर कि इनका क्या दोष था। तब गंगा ने बताया कि ये सात बालक वही है जिनको ऋषि वशिष्ट ने श्राप दिया था। हुआ यूँ कि एक बार आठों वसु (देव) अपनी पत्नियों के साथ पृथ्वी पर घुमने के लिए गये हुए थे। उस समय वे ऋषि वशिष्ट के आश्रम में पहुंचे और वहा से नंदिनी नाम की एक गाय को चुरा कर ले आए। तब ऋषि वशिष्ट ने उन सभी को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब मैंने उन सभी से वादा किया कि मैं उन सभी को अपनी कोख से जन्म देते ही मार दूंगी ताकि वे जल्दी से जल्दी इस श्राप से मुक्त हो जाए और यह आठवां पुत्र (भीष्म पितामह) वही वसु (प्रभास) है जिसने ऋषि की गाय चुराई थी।

उसके बाद गंगा अपने बेटे देवव्रत (भीष्म पितामह) को लेकर स्वर्ग चली जाती है और 16 वर्ष बाद जब देवव्रत की शिक्षा पूरी हो जाती है तब उसे राजा शांतनु के पास छोड़ कर चली जाती है। तो यह थी भीष्म पितामह की जन्म कथा

Share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Follow Us

Follow us on Facebook
error: Content is protected !!