लाल बहादुर शास्त्री पर निबंध
लाल बहादुर शास्त्री पर निबंध : लाल बहादुर शास्त्री कद में छोटे थे लेकिन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। शास्त्री जी के ऊपर गांधी जी के विचारो का काफी प्रभाव था।
लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। लाल बहादुर शास्त्री ने “शास्त्री” की उपाधि काशी विद्यापीठ से प्राप्त की थी।
पंडित जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लाल बहादुर शास्त्री ने भारत का नेतृत्व किया था।
जन्म | 2 अक्टूबर 1904 |
मृत्यु | 11 जनवरी 1966 |
पिता | श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव |
माता | रामदुलारी देवी |
समाधी स्थल | विजय घाट (नई दिल्ली) |
अवार्ड | भारत रत्न (1966) |
प्रारंभिक जीवन
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके पिता का नाम “शारदा प्रसाद श्रीवास्तव” तथा माता का नाम “रामदुलारी” था।
लाल बहादुर शास्त्री जब 18 महीने के हुए तब उनके पिता का देहांत हो गया इसलिए उनकी प्राथमिक शिक्षा ननिहाल में हुई थी।
लाल बहादुर शास्त्री को “शास्त्री” की उपाधि काशी विद्यापीठ से प्राप्त हुई थी। इस उपाधि से मिलने के बाद उन्होंने अपना जाति सूचक शब्द “श्रीवास्तव” हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा दिया।
लाल बहादुर शास्त्री का विवाह 1928 में हुआ था। उनकी पत्नी का नाम “ललिता” था लाल बहादुर शास्त्री के छह संतान हुई। जिनमें दो पुत्री कुसुम तथा सुमन तथा चार पुत्र हरीकृष्ण, अनिल, सुनील तथा अशोक
राजनीतिक जीवन
लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी शिक्षा संस्कृत भाषा में पूरी की थी। शिक्षा समाप्त होने के पश्चात वे “भारत सेवक संघ” के साथ जुड़ गए।
वे सच्चे गांधीवादी थे। उन्होंने अपना सारा जीवन सादगी के साथ जिया तथा गरीबों की सेवा की।
शास्त्री जी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया जैसे 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का डांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन
इस कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गांधी जी ने “करो या मरो” का नारा दिया था। उसी वक्त लाल बहादुर शास्त्री “मरो नहीं, मारो” का नारा दिया था।
लाल बहादुर शास्त्री जी के राजनीतिक जीवन में पुरुषोत्तम दास, गोविंद बल्लभ पंत तथा जवाहरलाल नेहरू का बहुत योगदान रहा। जिस कारण वे आजादी के बाद भारत के गृह मंत्री के पद तक पहुंचे।
शास्त्री जी जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने।
प्रधानमंत्री बनने के बाद उनका शासनकाल काफी मुश्किलों से भरा था। 1965 के भारत पाकिस्तान के युद्ध में उनका नेतृत्व काफी प्रभावशाली रहा।
इसी समय लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान, जय किसान” का नारा दिया।
ताशकंद समझौता
1965 भारत पाकिस्तान के युद्ध में भारतीय सेना ने लाहौर पर धावा बोल दिया और भारत ने पाकिस्तान का कुछ हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया।
भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया गया कि वह युद्ध विराम लगाये तथा पाकिस्तान की जमीन वापस करें।
अमेरिका और रूस की चहल कदमी के बाद भारत के प्रधानमंत्री को रूस के ताशकंद समझौता में बुलाया गया।
शास्त्री जी ने ताशकंद समझौते की हर शर्त को मंजूर कर लिया लेकिन उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके को लौटाना स्वीकार नहीं करेंगे।
उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान थे दोनों के मध्य युद्ध विराम पर हस्ताक्षर हुए।
लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु
भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के मध्य युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर होने के कुछ ही घंटों बाद 11 जनवरी 1966 को मध्य रात्रि में लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया गया लेकिन यह आज भी रहस्य है की उनकी हत्या हुई थी या आर्ट अटैक के कारण मृत्यु हुई थी।
लाल बहादुर शास्त्री जी का समाधी स्थल विजय घाट (नई दिल्ली) में स्थित है।
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